मन्दिर हो मस्जिज्द हों सिआसत न पूछिये
फिरकों में नफरतों की जहालत न पूछिये
उसके सहारे छोड़ दे कश्ती को न खुदा
फिर आर हो या पार ज़मानत न पूछिये
जाना हे हर किसी ने ज़माने को छोड़ कर
कितनी किसी ने की ये इबादत न पूछिये
रख ली थी लाज उसने कलमो रिसाल की
कितनी अजीम थी वो शहादत न पूछिये
इंसानियत से बढ़ के तो कुछ भी बड़ा नही
"सागर " से दोस्तों ये रिसालत न पूछिये
Thursday, April 2, 2009
Monday, March 30, 2009
ग़ज़ल
रिश्तों में परिंदे भी सियासत नही करते
इंसान ही रिश्तों की हिफाज़त नही करते।
गद्दार न पैदा हो किसी कोख से या राब,
गद्दार तो कोमों की हिफाज़त नही करते
बहता है लहू हिंदू मुसलमान का लेकिन,
जंगल में जनावर भी तिजारत नही करते
कमजोर इरादों को कभी पास न रखना,
दिल तोड़ के अक्सर ये मसाफ़त नही करते
किरदार निभाने का सलीका भी तो आए,
फिर लोग ज़माने में नदामत नही कराते
माँ बाप से बड़कर कोई मक्का नही होता
सरवन की तरह बच्चे जियारत नही करते
करते हैं दुआएँ जो औरों के लिए "सागर "
मस्जिद या शिवाले में इबादत नही करते
इंसान ही रिश्तों की हिफाज़त नही करते।
गद्दार न पैदा हो किसी कोख से या राब,
गद्दार तो कोमों की हिफाज़त नही करते
बहता है लहू हिंदू मुसलमान का लेकिन,
जंगल में जनावर भी तिजारत नही करते
कमजोर इरादों को कभी पास न रखना,
दिल तोड़ के अक्सर ये मसाफ़त नही करते
किरदार निभाने का सलीका भी तो आए,
फिर लोग ज़माने में नदामत नही कराते
माँ बाप से बड़कर कोई मक्का नही होता
सरवन की तरह बच्चे जियारत नही करते
करते हैं दुआएँ जो औरों के लिए "सागर "
मस्जिद या शिवाले में इबादत नही करते
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